Thursday, July 23, 2015

कुछ ख्वाहिशों के दावेदार हम भी हैं

कुछ ख्वाहिशों के दावेदार हम भी हैं
वो चरागर हैं तो बिमार हम भी हैं ।

संम्भालते किसे तामाशाई बने है जो
भरि हैं महेफ़ील लाचार हम भी हैं ।


आँखों ने नजारें बहुत देखे हैं साहेब
आइनें में वो हैं शिशे के पार हम भी हैं ।

दोस्ती न सहि चलो अदावत हि सहि
आपकी खुशी में जलें बारबार हम भी है ।

बहुत बातें कि है बर्बादीयों कि आपने
हर सम्त टूटकर तार तार हम भी हैं ।

1 comment:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 04 जून 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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