Monday, August 4, 2014

अब कहि से इस दिल पे करार आया है

अब कहि से इस दिल पे करार आया है
वक्त ने हर हर्फ़को बारिकी से सम्झाया है ।

मुफलिसी-ए- लिबास और रुदाद सहाना
उससे ज्यादा तो वो आज मुस्कुराया है  ।


कभी गैरों मे कभी अपनों में वो नजर आया
वक़्त के साथ उसने हर रिस्ता निभाया हैं  ।

ना कुछ हासिल-ए-तमन्ना खामोश निगाहों में
पल दो पल में कोई जिन्दगी खरीद लाया है ।

कुछ उलझे हुए सवाल कुछ बिखरे हालात
कब किसने इस बातों को सुलझा  पाया है ।

खामोश निगाहें धुँवें की गुब्बार ताकता हैं
उफ उन नज़रों में ये कैसा धीरज समाया है ।

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