Saturday, August 17, 2013

इतनी बेढंग ये जिंदगी क्यू हैं

इतनी बेढंग ये  जिन्दगी क्यू  हैं
आज भी अजनबी अजनबी क्यू है ।

दुनियाँ की  चाहत तमन्ना है चाँद
फिर भी उदास उदास चाँदनी क्यू है  ।

तितलियाँ मस्त है गुफ्तगू में फूलों से
 हर तरफ  बेगैरत बस आदमी क्यू है  ।

बेवक्त ख्वाबों से झिंझोडकर हमे
वक्त हमे हि दिखाती ये बेदर्दी क्यू है ।

कभी ना निभाई वफा तुने  ए दोस्त
दिल चहता तेरी ही सलामती क्यु है  ।

मुद्धतों से है आना जाना इस बज्म में
लगती हर मुलाकात आखिरी क्यू है  ।

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