अक्षर स्पर्श
कथा
कविता
गज़ल
टुक्रा टाक्री
प्रसँग बस
बाहिर बाट
मुक्तक
लघु कथा
शेर ओ शायरी
संस्मरण
हाईकु
हिन्दी कविता
हिन्दी गज़ल
Monday, December 30, 2013
मेरा झुठ
इक हादासा
मेरे झुठ का
कितने खामोश थे हम
जब हमने तुमसे झुठ बोला था
तेरी खुशी इसी मे है
मेरे दिल कहा फिर ....
माफ करना हमे कि
हमने सच में झुठ बोला था
पर ए दोस्त !
तेरे लिए दिल से बोला था ।
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment