Saturday, September 21, 2013

जिन्दगी अब भी सज़ा दे

जिन्दगी  अब भी सज़ा दे कुछ इस तरह
खुली आँखों में सुला दे कुछ इस तरह ।

वक्त छुट गई राहवर आगे निकल चुके
माज़ी आज भी वफा दे कुछ इस तरह  ।


उन्हे नाज़ अब भी है अपनी दिलकशी पर
आईना पूरा सच बता दे कुछ इस तरह ।

चाहा था  बहुत दुर कदम मिलाकर चलु
वक्त ही  हमेसा  दगा दे कुछ इस तरह ।

इन ख्वाबों को हमने बर्षों लगाया सजाने में
वों पल में राख बना दे कुछ इस तरह ।

यादों का काफीला जब भी दिल पे दस्तक दे
अश्क आँखो में सुखा दे कुछ इस तरह ।

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