जलना काम है शमा का हर रात जलती है
ख्वाहिशों कि शाम वैसे हि हर दिन ढलती है ।
चाँद को छुने की हिमाकत न पाल ए दिन
उसकी चाह मे सितारें भी हाथ मलती है ।
अभि तो जिन्दा हु कैसे भुलु चाहतको अपनी
यहाँ तो मुर्दे के दिल मे भी हसरते पलती है ।
हमे नही कोइ शिकायत दिल के खलिस से
ये वो तपिस है जिससे पत्थर भी पिघलती है ।
ये केसी उमस फैली है जिन्दगी कि राहों मे
हवाओं मे कमि रहती है जो हमेसा खलती है ।
ख्वाहिशों कि शाम वैसे हि हर दिन ढलती है ।
चाँद को छुने की हिमाकत न पाल ए दिन
उसकी चाह मे सितारें भी हाथ मलती है ।
अभि तो जिन्दा हु कैसे भुलु चाहतको अपनी
यहाँ तो मुर्दे के दिल मे भी हसरते पलती है ।
हमे नही कोइ शिकायत दिल के खलिस से
ये वो तपिस है जिससे पत्थर भी पिघलती है ।
ये केसी उमस फैली है जिन्दगी कि राहों मे
हवाओं मे कमि रहती है जो हमेसा खलती है ।
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