क्या क्या बहाने हैं शब की तनहाईयों का
हम खुश हैं पाकर साथ परछाईयों का ।
माहिर हैं वो बातों से बात बनाए और निकले
फिर भी जिक्र आ जाए उन तमाशाईयों का ।
निकल चुके अब तो घर से हम ए राहवर
ना कोइ शिकायत ना गिला रूसवाईयों का ।
इश्क की आग मे जलकर बस खाक होना हैं
होता ही नहीं अब कोइ असर दवाईयों का ।
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