Sunday, May 12, 2013

अश्क क्युँ युँ ही आँखो से बहाने लगे


अश्क क्युँ यूँ ही आँखो से बहाने लगे
किस्से अब फिर  गैरों को बताने  लगे  ।

गर्दिशो में होते है चाँद सितारे भी
गर वो भी अपनी कहानी सुनाने लगे ।

रंज को पालकर बैठे है जो दिल मे
वोही  अपनो का आशियाँ जलाने लगे ।

किसको पता कौन आया नकाब में
जिसने आग लगाया ,बुझाने लगे ।

क्या क्या रिस्ते निभाएँ  है तुम ने जो यहाँ
हमे हमारे रिस्ते  याद दिलाने लगे ।

 भरोसा तोडा था जिसने बर्षो पहले
वोही आकार आज भी  शर्त लगाने लगे ।

No comments:

Post a Comment