अश्क क्युँ यूँ ही आँखो से बहाने लगे
किस्से अब फिर गैरों को बताने लगे ।
गर्दिशो में होते है चाँद सितारे भी
गर वो भी अपनी कहानी सुनाने लगे ।
रंज को पालकर बैठे है जो दिल मे
वोही अपनो का आशियाँ जलाने लगे ।
किसको पता कौन आया नकाब में
जिसने आग लगाया ,बुझाने लगे ।
क्या क्या रिस्ते निभाएँ है तुम ने जो यहाँ
हमे हमारे रिस्ते याद दिलाने लगे ।
भरोसा तोडा था जिसने बर्षो पहले
वोही आकार आज भी शर्त लगाने लगे ।
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