Friday, May 31, 2013

हर तरफ ये दौर ए शिकायत खुब हैं

हर तरफ ये दौर ए शिकायत खूब हैं
मेरी सासों पे उसकी सियासत खूब है ।

सम्भाल के रखा जिसे  हमने अब तक 
आज वोही दिल उसकी अमानत खूब है । 

हमे गुमसुम यादों में खोया देखाकर 
खामोशीयाँ भी करती बगावत खूब है ।

दर्द हो भी शबनम गिरती नहीं आँखों से 
पलकों में रुके अश्को की सराफत खूब है ।

मेरी रुखसती में , वो आँखे नम कर  
मौत को भी देने आये जमानत खूब हैं ।

5 comments:

  1. मेरी रुखसती में , वो आँखे नम कर  
    मौत को भी देने आये जमानत खुब हैं

    बेहतरीन रचना निर्मला जी .... बधाई !

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार दिल की आवाज जी मेरी कोसिशको सहराने के लिए ।

      Delete
  2. दर्द हो भी शबनम गिरती नहीं आँखों से
    पलकों में रुके अश्को की सराफत खुब है ।

    सभी अश'आर दिल को छू लेने वाले हैं. इस शानदार गज़ल के लिए दिली बधाई स्वीकार कीजिये. कृपया खुब को खूब कर लें.

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी सुझावको हार्दिक नमन और आभार अरुण कुमार जी

      Delete
  3. मौत को भी देने आये जमानत खुब हैं

    बेहतरीन रचना निर्मला जी

    ReplyDelete