हर तरफ ये दौर ए शिकायत खूब हैं
मेरी सासों पे उसकी सियासत खूब है ।
सम्भाल के रखा जिसे हमने अब तक
आज वोही दिल उसकी अमानत खूब है ।
हमे गुमसुम यादों में खोया देखाकर
खामोशीयाँ भी करती बगावत खूब है ।
दर्द हो भी शबनम गिरती नहीं आँखों से
पलकों में रुके अश्को की सराफत खूब है ।
मेरी रुखसती में , वो आँखे नम कर
मौत को भी देने आये जमानत खूब हैं ।
मेरी सासों पे उसकी सियासत खूब है ।
सम्भाल के रखा जिसे हमने अब तक
आज वोही दिल उसकी अमानत खूब है ।
हमे गुमसुम यादों में खोया देखाकर
खामोशीयाँ भी करती बगावत खूब है ।
दर्द हो भी शबनम गिरती नहीं आँखों से
पलकों में रुके अश्को की सराफत खूब है ।
मेरी रुखसती में , वो आँखे नम कर
मौत को भी देने आये जमानत खूब हैं ।
मेरी रुखसती में , वो आँखे नम कर
ReplyDeleteमौत को भी देने आये जमानत खुब हैं
बेहतरीन रचना निर्मला जी .... बधाई !
हार्दिक आभार दिल की आवाज जी मेरी कोसिशको सहराने के लिए ।
Deleteदर्द हो भी शबनम गिरती नहीं आँखों से
ReplyDeleteपलकों में रुके अश्को की सराफत खुब है ।
सभी अश'आर दिल को छू लेने वाले हैं. इस शानदार गज़ल के लिए दिली बधाई स्वीकार कीजिये. कृपया खुब को खूब कर लें.
आपकी सुझावको हार्दिक नमन और आभार अरुण कुमार जी
Delete।
मौत को भी देने आये जमानत खुब हैं
ReplyDeleteबेहतरीन रचना निर्मला जी