इल्तजा कभी,कभी इबादत करूँ
फुर्सद में खुद से शिकायत करूँ ।
रफ्ता रफ्ता दोस्ती दिल की खलिस से
फिर भी यूं जिन्दगी की चाहत करूँ ।
राही हम, किसी मोड में छुटेगा साथ
पल पल हकीकत से बगावत करूँ ।
वो अमानतों कि भी हिसाब चाहते हैं
मै कब किसे दिल से रूखसत करूँ ।
No comments:
Post a Comment